सुबह - सुबह पोस्टमैन एक चीट्ठी देकर गया है और देवेंद्र जी उसे लेकर देख रहे थे , उनके दिमाग में एक बात समझ नही आ रहा कि एकाएक विजय ने उन्हें चीट्ठी क्यों लिखा ? वैसे भी चीट्ठी के ऊपर विजय नाम छोड़ और कुछ भीनही लिखा गया है । बाध्य होकर उन्होंने चीट्ठी के लिफाफेको फाड़ा , अंदर से निकल आया चार - पांच पन्ने की एक चीट्ठी , लिखावट साफ है पर जैसे कांपते हुए हाथोंसे लिखा गया है कुछ पन्नो की यह चीट्ठी । देवेंद्र जी पहले से अंत तक एकबार चीट्ठी को देखकर फिर पहले से पढ़ना शुरू किया ।
जिसमें लिखा था -
" आज मैं इस चीट्ठी को लिख रहा हूँ इसके पीछे एक ही कारण है , मैं अपने जानने वालों या परिवार के सदस्यों को बताना चाहता हूं कि मेरे जीवन का अंतिम परिणाम क्या हुआ था । एक सामान्य सा इन्वेस्टिगेशन मेरे जीवन को इस तरह से समाप्त कर देगा इसको मैंने कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था । यह घटना हुआ है ठीक दो दिन पहले पर उसका स्वाद मैं प्रति मुहूर्त वहन कर रहा हूँ मानो वो सभी प्रति मुहूर्त मुझे तड़पा रहे हैं । मेरे जीवन का अंत होने वाला है । आज से दो दिन पहले यानी ठीक मंगलवार एक विशेष एवं जरूरी काम के लिए महेश जी ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया , शाम के समय मैं उनके ऑफिस के उद्देश्य से रवाना हुआ ।………………….."
दोपहर को ही निकल जाऊंगा ऐसा ही सोचा था , कहा भी था महेश जी को कि दोपहर को ही निकल जाऊंगा ।लेकिन वही आलस्य , घर से निकलते - निकलते शाम हो गई इसीलिए साढ़े पांच या छह बजे के आसपास घर से रवाना हुआ । दोपहर को इसलिए बोला था क्योंकि वैसे भी क्रिसमस का मौसम है उसके ऊपर से शाम को शहर के रास्ते पर और भी भीड़ हो जाता है। यह भीड़ - भाड़ मुझे कुछ ज्यादा पसंद नही इसीलिए कुछ पहले ही निकलने का प्लान था । जो भी हो प्लान तो चौपट हो गया , महेश जी के ऑफिस में पहुँचतें - पहुँचतें लगभग साढ़े छह बज गए । वहाँ पहुंचकर देखा उनके ऑफिस के दूसरे तल्ले पर लाइट जल रहा है । वैसे भी वो टाइम के बहुत पंचुअल हैं एवं यही भय मेरे दिमाग में घूम रहा था । अच्छे से दो - चार बात आज वो जरूर सुनाएंगे मुझे , क्या करूँ गलती तो मेरा ही है और बात भी मुझे ही सुनना पड़ेगा । इसीलिए समय व्यर्थ न कर धीरे से उनके ऑफिस की तरफ गया और दरवाजे को खोलकर बोला – " सर् , अंदर आऊं ? "
" कौन ? ओ हाँ विजय आओ आओ । लेकिन तुमको दोपहर में आना था । "
मैं बोला – " हां सर् कुछ देर हो गई । "
" नही बहुत ही , कोई जरूरी काम था ? "
" हाँ एक फाइल को चेक कर रहा था । "
महेश जी यह सुन कुछ शांत हुए और बोले – " अच्छा ठीक है तो मैं काम के बात पर आता हूँ जिसके लिए तुम्हारे पास बुलावा भेजा है । ये लो , ये फोटो । "
यह बोलकर उन्होंने मेरी तरफ एक फोटो बढ़ाया । फोटो को हाथ में लेकर फोटो को देखा , 20 - 25 साल पुराने एक घर का फोटो है । फोटो की तरफ एकटक देखते - देखते मेरे पूरे शरीर में बेचैनी लगा । इस ठंडी के शाम में भी मेरे माथे के कोने पर बूंद बूंद पसीना जमा हो गया है । पूरा शरीर मानो एक अद्भुत सिहरन से भर गया । परसों रात को एक पार्टी में बहुत कुछ उल्टा - पुल्टा खाना हो गया था इसीलिए सोचा शायद उसी कारण से शरीर में कुछ अस्थिर महसूस हो रहा है शायद कब्ज के कारण । इसीलिए फोटो से आंख हटाकर महेश जी के बातों पर ध्यान दिया ।
महेश जी बोले – " मेरे पास डिपार्टमेंट से यह कल आया है , एक मर्डर केस है । यह केस मुझे ही सम्भालना है पर एक मीटिंग के कारण मुझे दिल्ली जाना होगा तो इसीलिए किसी ऐसे को खोज रहा था जो इसमें माहिर हो । देवेंद्र जी ने मुझे तुम्हारें बारे में बताया ,जानते तो हो उनको । "
मैं बोला – " हाँ सर् उनको क्यों नही पहचानूँगा , वो मेरे रिश्तेदार हैं ।"
" हाँ उन्होंने ही बताया कि नया ज्वाइन किया है तुमने ,क्राइम इन्वेस्टिगेट डिपार्टमेंट में अच्छा नाम है तुम्हारा । सुना है इसी बीच कई केस को सॉल्व कर दिया है तुमने ।"
" हाँ किया हूँ यही कुछ 4 - 5 "
" हाँ इसीलिए सोचा इस केस को तुमको ही देता हूँ ,तुम्हारा ज्ञान भी बढ़ेगा और मेरा काम भी हो जाएगा । कहो तो तुमको मैं कुछ पेमेंट भी देने को राजी हूँ ।"
मैं थोड़ा हँसकर बोला – " नही सर् वह सब बाद में । "
" अच्छा है । तुम कल सुबह ही काम पर लग जाओ । वैसे भी बहुत लेट हो गया है । "
" ठीक सर् वही करूँगा । कल सुबह ही मैं काम पर लग जाऊंगा । "
" अच्छा ये लो यह है पुलिस द्वारा सील की गई कमरे की चाभी । कोई असुविधा होने के कारण इस कार्ड को रखो इसमें मेरा नंबर है जरूरत हो तो कॉल करना । "
" ठीक है सर् शुक्रवार को मिलता हूँ । "
चाभी को पॉकेट में रखा और ऑफिस से निकल आया । ठंडी की शाम थी पर रास्ते पर लोग काफी थे पर गाड़ी बहुत ज्यादा यहां नही मिलता इसीलिए गाड़ी खोजने में कुछ समय लगा । अंत में एक गाड़ी पकड़ घर को रवाना हुआ । कमरे में जाकर बेड पर बैठकर तुरंत ही आशीष को एक मैसेज कर दिया । मेरा किसी रूम में अकेले जाकर इंवेस्टिगेट करना अच्छा नही लगता । थोड़ा बोरिंग फील होता है इसीलिए उसको जानकारी दे दी कि वह अगर साथ जाएगा तो मुझे अच्छा लगेगा । इसी कारण तुरंत ही मैसेज भी कर दिया ।देखते हैं वह क्या कहता है । धीरे - धीरे डिनर खत्म कर बिस्तर पर सोने गया । नींद नही आ रहा था क्योंकि उस फोटो को देखने के बाद अब भी मेरा शरीर कुछ गड़बड़ सा था । सिर भी घूम रहा है , ठंडी की रात उस समय लगभग 12 बज चुके थे । कमरा इतना ही शांत है कि घड़ी की टिक - टिक भी कान में बज रहे हैं । रात बढ़ते बढ़ते कब आंख बंद हो गए नही पता फिर सो गया अनन्त नींद में ।
सुबह उठकर घड़ी देखा तो साढ़े सात कब का क्रॉस करके आठ पर चला गया है । साधारणतः इतने देरी में मैं सोकर नही उठता पर कल रात के बचैनी वाले भाव अब भी लगातार हो रहे हैं । साथ में कुछ और भी जुड़ा है और वह है पूरा शरीर दर्द कर रहा है जैसे किसी ने बहुत तेज लाठी से मुझे पीटा हो या कहे पूरा दिन बहुत मेहनत करने पर जैसा दर्द होता है ठीक वैसा ही । परन्तु मैं इसका कारण समझ नही पा रहा । पास में रखे मोबाइल में देखा कोई मैसेज आया या नही । अचानक याद आया आशीष को कल मैसेज किया था । मैसेज को जब खोला तो उसे देखकर ही दिमाग खराब , महाशय का बीमार हैं वो आज नही जा पाएंगे । इसका मतलब मुझे अकेले ही जाना होगा उस रॉयल फ्लैट के छठवें तल्ले के रूम पर इसीलिए देर नही किया जल्दी से उठ फ्रेश होकर ब्रेकफास्ट करके रास्ते पर निकल गया ।
सुबह - सुबह रास्ते पर आज भीड़ काफी है गाड़ी भी बहुत सारे ही हैं जैसा प्रतिदिन रहता है । एक टैक्सी पकड़ ड्राइवर को एडरेस बताया उसने सीधे ले जाकर उतारा उस रॉयल फ्लैट के नीचे । टैक्सी का किराया देकर मैंने खोजना शुरू किया कि इस फ्लैट का मालिक कहाँ है । एक आदमी को देखा कि फ्लैट के नीचे खड़े होकर मेरे तरफ एक आग्रह की दृष्टि से देख रहा है मानो वो कहना चाहते हो कि हां मैं आपके लिए ही खड़ा हूँ । मैं खुद ही उनके पास गया और पूछा – " अच्छा इस घर के मालिक कहाँ हैं कुछ बता सकते हैं ? "
वह आदमी बोला – " क्या तुम विजय हो ? "
" हां , तो आप ही इस घर के मालिक हैं ? "
" हां मैं ही हूँ । "
मैं आश्चर्य होकर बोला – " पर आप मुझे कैसे जानते हैं ? "
" तुम्हारे बारे में महेश जी ने सब कुछ बताया है । "
" वाह ! तब तो अच्छा है फिर चलिए समय बर्बाद न करते हुए काम को शुरू किया जाए । मुझे दिखा दीजिए पांचवे तल्ले का वह रूम ।"
" हां चलिए "
यह बोलकर उन्होंने घर के सीढ़ी से ऊपर चढ़ना शुरू किया । उनको अनुशरण कर मैं भी पीछे - पीछे सीढ़ी चढ़ने लगा । धीरे - धीरे चौथे तल्ले को पार कर पांचवे पर पहुँच रहा हूँ फिर से न जाने कैसी अस्थिरता पूरे शरीर में दौड़ गई वह पुरानी बेचैनी और भी बढ़ गया है । पूरे शरीर में एक ठंडा सिहरन खेल रहा है । पांचवे तल्ले पर पहुंचते ही मेरा ध्यान गया बाहर की तरफ झूलते बालकनी की तरफ , बड़ा खुला सा एक जगह उस तरफ आंख पड़ते ही शरीर कांप गया । वहां कई प्रकार के अलग - अलग चिन्ह बने थे जो मेरे समझ से बाहर थे लेकिन जो देखकर समझ रहा हूँ वह रहस्य की तरफ साफ इशारा कर रहे हैं । साथ में कुछ खून की तरह लाल दाग , जिसे देखकर तुरंत जान गया कि यह खून ही है । उस बालकनी पर पहुंचते ही मेरा पूरा शरीर रहस्य व रोमांच से भर गया । पहले ही पल मुझे ऐसा लगने लगा कि कोई मुझे पीछे से फॉलो कर रहा है । मेरे आसपास मानो मेरे और घर के मालिक के अलावा और भी कोई है । उसकी अनुपस्थिति मैं अनुभव कर रहा हूँ । ऐसा लग रहा है वो सब मुझे कुछ बताना चाहते हैं । मैं एक बालकनी के पास जाकर शहर को ठीक से देखने की कोशिश कर रहा था । घूम घूम कर बालकनी के चारों तरफ देख रहा था उसी समय फ्लैट के मालिक ने मुझे पीछे से बुलाया – " आइए ये है आपका वह पांचवे तल्ले का रूम । "
" रूम को देखकर तो लग रहा है बहुत पुराना है । "
फ्लैट का मालिक बोला – " मेरा नाम तो आप जानते ही होंगे । महेश जी ने आपको बताया ही होगा । "
" नही उन्होंने आपके बारे में मुझे नही बताया । कुछ बताइए आप । "
"ओ नही बताया मतलब भूल गए होंगे , मेरा नाम है मदनलाल । आइए । "
यह कह उन्होंने मेरी तरफ एक चाभी बढ़ाई ।
मैं बोला – " नही मेरे पास चाभी है । "
मदन जी बोले – " यह छत की चाभी है । आप तो इस फ्लैट को देखने आएं हैं तो छत भी देख लीजिए वहां से पूरा शहर बहुत बढ़िया दिखता है । "
" अच्छा ठीक है । हाँ वो तो देखूंगा ही ।"
" आप अपने साथ मोमबत्ती या टॉर्च तो लेकर जरूर आए होंगे । "
" नही पर क्यों ? "
" बात यह है बहुत दिन हुआ लाइट कट है कमरे में इसीलिए शाम से पहले मोमबत्ती या लाइट ले लेते तो अच्छा ही होता । अगर आप नही ला सकते तो मेरे केयर टेकर को बोल दीजिए वह ला देगा । "
वाह भई वाह यह समस्या भी है यहां पर , छोड़ो क्या किया जाए मैं ही जाकर खरीद लाऊंगा मोमबत्ती । वैसे भी केयर टेकर को मेहनत करा कर क्या लाभ । इसके अलावा घूमना भी हो जाएगा आसपास ।
मदन जी बोले – " हाँ एक और बात बताना था , आप तो इस घर को देखने आए हैं । तो कृपया करके कोई नेगेटिव रिव्यू मत दीजियेगा । क्योंकि कई दिनों से यह फ्लैट खाली है बेच भी नही पा रहा हूँ किसी को ,इसीलिए इसे थोड़ा दिमाग में रखियेगा । "
" हां , हां ठीक है । "
" तो मैं चलता हूँ अगर आपको जरूरत हो तो मुझे बुला लीजिएगा मैं नीचे ही रहता हूँ । "
मदन जी के जाते ही चाभी से ताले को खोला , दरवाजे को धक्का देते ही दरवाजा 'कींकींकींकीं' आवाज करते हुए खुल गया । अंदर जाते ही ऐसा लगा यह कोई आम कमरा नही है । दरवाजा खोलते ही एक झोंका हवा मोक्ष पाने के लिए बाहर निकल गया । मानो उस हवा को भी इस कमरे में रहते हुए घुटन हो रहा था । दिन में भी इतना गहरा अंधेरे से घिरा रह सकता है कोई कमरा , इसे न देखने पर मैं कभी नही जानता । सीढ़ी से ऊपर आते समय मुझे जो अनुभूति हो रहा था फिर पुनः वह शुरू हो गया । कोई तो है जो इस अंधेरे से मुझे देख रहा है । मैं इन सब घटनाओं को ज्यादा नही मानता और अभी भी न मानते हुए अपने बैग को कमरे की फर्श पर रखकर बाहर निकल आया । कमरे को बंद कर नीचे आया और निकल गया रास्ते पर मोमबत्ती खरीदने के लिए । .….
अगला भाग क्रमशः ।।
@rahul